भाई मंसूर नक़्वी जी बहुत अच्छा कर रहे हो भाई ! अपना काम बनता, भाड़ में जाये जनता… नेताओं की पग पग पर चांदी है , तब ही तो हर कोई नेता बनने के लिए भागता हैं । आपको नज़्र है मेरी एक नज़्म के दो बंध … मौज मनाए भ्रष्टाचारी ! न्याय व्यवस्था है गांधारी ! लोकतंत्र के नाम पॅ तानाशाही सहने की लाचारी !
हत्यारे नेता बन बैठे ! नाकारे नेता बन बैठे ! मुफ़्त का खाने की आदत थी वे सारे नेता बन बैठे !
उम्मीद है आप एक कार्टूनिस्ट के नज़रिये से भी इन लाइनों पर ग़ौर फ़्रमाएंगे … शुभकामनाओं सहित … - राजेन्द्र स्वर्णकार
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भाई मंसूर नक़्वी जी
बहुत अच्छा कर रहे हो भाई !
अपना काम बनता, भाड़ में जाये जनता…
नेताओं की पग पग पर चांदी है , तब ही तो
हर कोई नेता बनने के लिए भागता हैं ।
आपको नज़्र है मेरी एक नज़्म के दो बंध …
मौज मनाए भ्रष्टाचारी !
न्याय व्यवस्था है गांधारी !
लोकतंत्र के नाम पॅ
तानाशाही सहने की लाचारी !
हत्यारे नेता बन बैठे !
नाकारे नेता बन बैठे !
मुफ़्त का खाने की आदत थी
वे सारे नेता बन बैठे !
उम्मीद है आप एक कार्टूनिस्ट के नज़रिये से भी
इन लाइनों पर ग़ौर फ़्रमाएंगे …
शुभकामनाओं सहित …
- राजेन्द्र स्वर्णकार
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